Sunday, October 28, 2007

चाणक्य - 39

धननन्द - महा अमात्य, क्या तुम विजयी हुए?

चाणक्य - नही सम्राट, शासक की पराजय में शिक्षक की विजय नही हो सकती| कहीं कोई विष्णुगुप्त चूक गया था, इसलिए आज किसी धननन्द को पराजित होना पड़ रहा है| यह विजय शिक्षक के लिए उपलब्धि नही हो सकती|

धननन्द - यह तथाकथित विजेताओं का दर्शन बोल रहा है, या एक शिक्षक का आदर्श?

चाणक्य - सम्राट, जो आदर्श यथार्थ हो, वह शिक्षक का दर्शन नही हो सकता|

धननन्द - तुम सच कह रहे हो विष्णुगुप्त| जो दर्शन तुम्हारा नही, वह यथार्थ या आदर्श नही हो सकता|

चाणक्य - सच कह रहे हैं सम्राट| सत्य कि परिभाषा भी हर व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न होती है|

धननन्द - तुम्हारे सत्य कि परिभाषा क्या है - जो ज्यादा ज़ोर से कहे वह सत्य है या जो जितने ज्यादा लोग कहें वह सत्य है?
सच तो यह है विष्णुगुप्त कि तुम विजयी नही हुए| सच यह है कि मैं पराजित नही हुआ|

चाणक्य - मैं जानता हूँ सम्राट कि मरने से मृत्यु पर विजय नही होती| धननन्द के मरने से धननन्द पर विजय नही हो सकती| मार्ग के कंटक से मुक्ति पाने से मार्ग निष्कंटक नही हो जाता|
पर इससे विष्णुगुप्त का प्रवास थम नही जाता| यदि कोई धननन्द उग्र होगा, तो कोई विष्णुगुप्त भी रुद्ध होगा| मेरा कार्य ही जागना और जगाना है सम्राट|

धननन्द - किसे जगाओगे तुम विष्णुगुप्त? इस सोये हुए समाज को? या उसे जो विचारों का आधार लिए आसन पर आएगा, और समय के साथ स्वयं को धननन्द पायेगा? वही मुझे फिर से जन्म देंगे|

- Dr. Chandraprakash Dwivedi

3 comments:

Braveheart said...

Like Ghalib, Fail and Sahir, like Camus and like Sachin, Dr Chandraprakash Dwivedi created through Chanakya, a very high quality of Artwork. It is endearing as well as intimidating. It is truly awe-inspiring!

-- Akshaya

Abhishek* said...

The effort that has been invested in this work gives us an indication of that profound faith that motivated him throughout the making of this work of art. Where did that faith come from? A faith not only in his abilities to execute it till the end, but also a faith in his people, and his audience. How did he do that?

Braveheart said...

"मेरा कार्य ही जागना और जगाना है सम्राट|"

-- Akshaya